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फास्टर नोट्स-2018 बी. ए. प्रथम वर्ष शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र

यूनिवर्सिटी फास्टर नोट्स

प्रकाशक : कानपुर पब्लिशिंग होम प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 307
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष (सेमेस्टर-1) शिक्षाशास्त्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-प्रश्नोत्तर

प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?

अथवा

शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।

अथवा

शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?

उत्तर -

भूमिका

(Introduction)

मानव जीवन में शिक्षा का अद्वितीय महत्व है। शिक्षा के अभाव में मानव कह पाना असम्भव होगा। शिक्षा के पूर्ण अभाव में मनुष्य केवल प्राणी मात्र ही रह सकता है, मानव या इन्सान नहीं। शिक्षा प्राप्त करके ही व्यक्ति एक सामाजिक मानव बनता है। शिक्षा के ही आधार पर सभ्य-असभ्य व्यक्ति में अन्तर किया जाता है। शिक्षा का मानव मात्र के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह मानव जीवन की अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं जटिल क्रिया है। शिक्षा एक जटिल एवं व्यापक प्रक्रिया है, जो जीवन भर चलती है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति अपनी अपरिपक्वता को परिपक्वता में, बर्बरता को सभ्यता तथा पाश्विकता को मानवता में परिवर्तित करता है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के शारीरिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों एवं क्षमताओं का विकास होता है - इसी तथ्य को प्रसिद्ध पाश्चात्य दार्शनिक लॉक ने इन शब्दों में प्रतिपादित किया है। "पौधों का विकास कृषि द्वारा होता है और मनुष्यों का शिक्षा द्वारा।' शिक्षा मानव मात्र के लिए एक विशिष्ट भोज्य पदार्थ के रूप में होती है, जिसके द्वारा मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया किसी न किसी रूप से चलती है। वास्तव में जन्म लेने के उपरान्त ही शिक्षा की प्रक्रिया किसी न किसी रूप में प्रारम्भ हो जाती है। जन्म के समय शिशु अनुभवशून्य होता है तथा उसके पश्चात् क्रमशः विभिन्न अनुभवों से परिचित होने लगता है। शिशु के अनुभवों में क्रमशः परिवर्तन एवं परिवर्द्धन होने लगता है। अनुभवों में होने वाले ये परिमार्जन ही शिक्षा हैं। शिक्षा की यह क्रिया केवल बाल्यकाल में ही नहीं चलती अपितु पूरे जीवन भर ही किसी न किसी रूप में चलती रहती है। मानव जीवन को सुन्दर, व्यवस्थित, परिमार्जित एवं सबल बनाने में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

शिक्षा का अर्थ

(Meaning of Education)

शिक्षा एक व्यापक एवं जटिल प्रक्रिया है। अतः स्वाभाविक है कि इसका अर्थ भी व्यापक एवं विवादास्पद होगा। भिन्न-भिन्न विद्वानों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा का अर्थ अपने-अपने ढंग से प्रतिपादित किया है। भित्र-भित्र विद्वानों ने शिक्षा के किसी एक पक्षीय रूप को ध्यान में रखते हुए उसके अर्थ का निर्धारण किया है। शिक्षा के वास्तविक अर्थ को जानने के लिए इसके शाब्दिक अर्थ, प्रचलित अर्थ, व्यापक एवं संकुचित अर्थ को जानना अभीष्ट होगा।
1. शिक्षा का प्रचलित अर्थ - आज के सभ्य मानव समाज में शिक्षा शब्द के सामान्य रूप से सभी लोग परिचित हैं। परन्तु यह परिचय शिक्षा के शास्त्रीय अथवा वैज्ञानिक अर्थ से न होकर केवल प्रचलित अर्थ से होता है। प्रचलित अर्थ के अनुसार किसी विषय से सम्बन्धित तथ्यों एवं सूचनाओं को एकत्रित कर लेना मात्र शिक्षा कहलाता है। इस अर्थ में किसी भी प्रकार उचित अथवा अनुचित ढंग से आवश्यक सूचनाओं को जान लेना तथा संकलित कर लेना ही शिक्षा है। इस अर्थ ने आन्तरिक विकास के महत्व को स्वीकार नहीं किया। अतः यह न तो शिक्षा का वास्तविक अर्थ है न ही शिक्षा का पूर्ण परिचय ही है। इस अर्थ की आलोचना करते हुए कहा गया है कि शिक्षा अन्दर से विकास होने को कहते हैं न कि बाहर से संशय को। वह तो स्वाभाविक मूल प्रवृत्तियों और रुचियों की क्रिया से होती है न कि बाह्य शक्तियों की प्रतिक्रिया स्वरूप।
2. शिक्षा का शाब्दिक अर्थ - किसी भी प्रत्यय अथवा शास्त्र के अर्थ का विवेचन करने के लिए सर्वप्रथम उसका शाब्दिक अर्थ भी सार्थक एवं महत्वपूर्ण होता है। हिन्दी में शिक्षा तथा अंग्रेजी में (Education) पर्यायवाची शब्द हैं। अतः शिक्षा के शाब्दिक अर्थ को जानने के लिए इन दोषों का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ जानना आवश्यक होगा।
हिन्दी भाषा में प्रचलित अर्थ शिक्षा मूलभूत रूप से संस्कृत भाषा के 'शिक्षा' धातु से बना है। संस्कृत में यह धातु ग्रहण करना या विद्या प्राप्त करने के लिए प्रयोग होता है। इस शाब्दिक अर्थ को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि शिक्षा का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से ज्ञान या विद्या प्राप्त की जाती है। बहुत से विद्वानों ने शिक्षा के इसी अर्थ को स्वीकार किया है।
शिक्षा का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द 'Education' है। यह शब्द लैटिन भाषा के एडूकेटम (Educatum) शब्द से बना है। जिसका अर्थ है - अन्तर्निहित शक्तियों एवं क्षमताओं को बाहर निकालना। इस आधार पर कहा जा सकता है कि -
Education या शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सम्बन्धित व्यक्ति की निहित शक्तियों य गुणों का विकास एवं प्रस्फुटन होता है। यहाँ स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इस अर्थ में शिक्षा एक व्याप्त प्रत्यय है, यह संस्थागत शिक्षा तक सीमित नहीं है।
3. शिक्षा का व्यापक अर्थ - शिक्षा के संकुचित अर्थ के अतिरिक्त इसके व्यापक अर्थ को भी जानना अनिवार्य है। व्यापक अर्थ में शिक्षा एक अति व्यापक एवं जटिल प्रक्रिया है, जो ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम है। इस अर्थ में शिक्षा जीवन भर चलती रहती है तथा पूरा संसार ही शिक्षा ग्रहण करने का क्षेत्र है। इस अर्थ का प्रतिपादन प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जे. एस. मैकेंजी ने इन शब्दों में किया है - "विस्तृत अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है और जीवन के प्रायः प्रत्येक अनुभव से उसके भण्डार में वृद्धि होती है।' इस अर्थ में विद्यालय ही एकमात्र शिक्षा के केन्द्र नहीं है। व्यापक अर्थ में केवल अध्यापक ही शिक्षक नहीं है। इस अर्थ में जिस भी व्यक्ति से कुछ नई बात सीखी जाये, वही शिक्षक है। इस अर्थ में हमारा पर्यावरण भी हमारा शिक्षक अर्थात् ज्ञान प्रदान करने वाला है। व्यापक अर्थों में जीवन भर व्यक्ति पर पड़ने वाले समस्त प्रभाव ही शिक्षा है। इस विषय में प्रो डमविल का कथन है "शिक्षा के व्यापक अर्थ में तो सभी प्रभाव आते हैं जो व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभावित करते हैं।' व्यापक अर्थ में शिक्षा का उद्देश्य प्रमाण पत्र प्राप्त करना नहीं है। इस अर्थ में शिक्षा का उद्देश्य भी व्यापक है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास करना होता है। शिक्षा के इस रूप की एडलर महोदय ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, "शिक्षा मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से सम्बन्धित क्रिया है। यह केवल छोटे बालक सम्बन्धित नहीं होती, यह तो जन्म से ही प्रारम्भ होती है और मृत्यु तक चलती रहती है।
वास्तविक शिक्षा का सम्बन्ध जीवन के सर्वागीण विकास की शिक्षा से है। यह शिक्षा स्वयं अपन आप में साध्य है।
4. शिक्षा का संकुचित अर्थ  (Narrow Meaning of Education)- शिक्षा की प्रक्रिया की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए शिक्षक के एक संकुचित अर्थ का भी प्रतिपादन किया गया है। संकुचित अर्थ में शिक्षा संस्थान में प्राप्त होने वाला ज्ञान है। इस अर्थ में नियमित रूप से पाठशाला या विद्यालय में प्रवेश लेकर विभिन्न परीक्षाएँ पास करना मात्र शिक्षा है। इसी प्रकार की शिक्षा तभी प्रारम्भ होती है, जब बालक नियमित रूप से संस्थान में प्रदेश पाता है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थी जीवन समाप्त होने तथा विद्यालय छोड़ने तक ही सीमित है। विद्यालय छोड़ने के साथ ही साथ शिक्षा की प्रक्रिया भी रुक जाती है। इस आधार पर वह व्यक्ति अशिक्षित ही कहलायेगा, जिसने किसी शिक्षा संस्थान में नियमित रूप से शिक्षा ग्रहण न की हो। इस अर्थ में शिक्षा केवल निर्धारित पाठ्यक्रम का अध्ययन मात्र होती है। इस अर्थ में शिक्षा का उद्देश्य डिग्री या प्रमाण-पत्र ग्रहण करना ही होता है। वर्तमान भारतीय परिवेश में नौकरी आदि प्राप्त करने के लिए इसी प्रकार की शिक्षा तथा प्रमाणपत्रों का महत्व स्वीकार किया जा रहा है। परन्तु यदि तटस्थ रूप से देखा जाये तो यह मान्यता उचित प्रतीत होती है।
शिक्षा की परिभाषा अपने शब्दों में निम्न प्रकार दी जा सकती है - 'शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो बालक के जन्म के समय से आरम्भ होकर उसके मरने के समय तक चलती रहती है और मरने के समय तक वह इससे कुछ न कुछ सीखता रहता है।"
इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा बालक के जीवन में जीवनपर्यन्त चलने वाली एक निरन्तर प्रक्रिया है।

शिक्षा की परिभाषा

(Definition of Education)

शिक्षा के उपरोक्त वर्णित अर्थों को जानने के बाद शिक्षा की एक समुचित परिभाषा ति करनी भी आवश्यक है। परिभाषा के निर्धारण द्वारा शिक्षा के अर्थ स्पष्टीकरण में सहायता प्राप्त होगी। अमेक भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों ने शिक्षा की अवधारणा को परिभाषित करने का प्रयास किया है। यहाँ अलग-अलग दृष्टिकोण से भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएँ प्रस्तुत की जायेंगी।
1. भारतीय विद्वानों द्वारा शिक्षा की परिभाषा- प्राचीन तथा आधुनिककाल के विभिन्न भारतीयों विद्वानों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा की प्रक्रिया की विभिन्न विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा की परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं। कुछ मुख्य भारतीय विद्वानों द्वारा परिभाषित परिभाषाओं का विवरण निम्न वर्णित है -
विवेकानन्द द्वारा परिभाषित विवेकानन्द ने भी स्वीकार किया है कि शिक्षा द्वारा मनुष्य की आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है, "शिक्षा मनुष्य के अन्तर में निहित ब्रह्म भाव की अभिव्यक्ति है।
अरविन्द द्वारा परिभाषित - आधुनिक युग के प्रसिद्ध विद्वान योगीराज श्री अरविन्द घोष ने शिक्षा को एक सहायक प्रक्रिया में स्वीकार किया है जो मनुष्य की आत्मिक प्रगति में सहायता प्रदान करती है। उनके शब्दों में, "प्रगतिशील आत्मा को अपने भीतर निहित तत्वों की सहायता देना ही शिक्षा है।
टैगोर द्वारा परिभाषित गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के व्यापक अर्थ को ध्यान में रखते शिक्षा की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की, "उच्चतम शिक्षा वह है जो केवल हमें शिक्षा ही नहीं देती वरन् हमारे जीवन को प्रत्येक अस्तित्व के अनुकूल बनाती है।'
महात्मा गाँधी द्वारा परिभाषित - महात्मा गाँधी ने भी शिक्षा को एक व्यापक एवं बहुपक्षीय प्रक्रिया स्वीकार किया है। उनके अनुसार, "शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा में अन्तर्निहित शक्तियों के सर्वांगीण प्रकट्य से है।'
2. पाश्चात्य विद्वानों द्वारा शिक्षा की परिभाषाएँ - अनेक ग्रीक एवं पाश्चात्य विचारकों ने भी समय-समय पर शिक्षा की विभिन्न परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं -
अरस्तू - "शिक्षा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन की रचना करती है।'
सुकरात "शिक्षा का आशय है सार्वजनिक प्रमाणिकता के विचारों को प्रकाश में लाना जोकि व्यक्ति के मन में निहित है।
प्लेटो - "शिक्षा शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास की एक प्रक्रिया है।'
पेस्टालाजी - "शिक्षा मनुष्य की आन्तरिक शक्तियों का स्वाभाविक समन्वित एवं प्रगतिशील विकास है।'
उपर्युक्त वर्णित विभिन्न परिभाषाओं द्वारा शिक्षा का वास्तविक अर्थ स्पष्ट हो जाता है। वास्तव में शिक्षा एक विस्तृत प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध व्यक्ति के सर्वांगीण अर्थात् आन्तरिक एवं बाहरी विकास से है। यह प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिक्षा एक प्रयोजनशील तथा आजीवन चलने वाली एक गत्यात्मक प्रक्रिया है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के आचार-विचार तथा अन्य पक्षों का परिमार्जन एवं संशोधन करना है। शिक्षा के परिणामस्वरूप व्यक्ति और समाज दोनों का उन्नयन होता है। शिक्षा के अर्थ के और स्पष्टीकरण के लिए इसकी मुख्य विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन भी प्रस्तुत किया जा रहा है।

शिक्षा की विशेषताएँ

(Characteristics of Education)

1. सचतेन प्रक्रिया - किन्ही अर्थों में शिक्षा को एक सचेतन प्रक्रिया भी कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो जान-बूझकर तथा सप्रयास चलाई जाती है। शिक्षक शिक्षार्थी को नियमित रूप से शिक्षा प्रदान करता है।
2. यह विकास की एक प्रक्रिया है - शिक्षा के परिणामस्वरूप व्यक्ति का विकास होता है। विकास उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जिसके द्वारा आन्तरिक शक्तियों का प्रगटीकरण या प्रस्फुटन होता है। शिक्षा में बाहर से कुछ नहीं थोपा जाता बल्कि अन्दर से विकास होता है।
3. शिक्षा एक प्रक्रिया है - शिक्षा को एक प्रक्रिया (Process) के रूप में स्वीकार किया जाता है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है। शिक्षा की इस प्रक्रिया से ही जीवन का विकास होता है।
4. शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है - शिक्षा की प्रक्रिया में दो धुरियाँ हैं अर्थात् शिक्षक तथा विद्यार्थी। यह भी कहा जा सकता है कि प्रक्रिया में शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। दोनों का एक-दूसरे के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।
5. शिक्षा की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है - शिक्षा के व्यापक एवं वास्तविक अर्थ को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि यह प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है। शिक्षा की प्रक्रिया जन्म से ही प्रारम्भ हो जाती है तथा मृत्यु तक चलती है। शिक्षा को केवल पाठशाला तथा संस्थागत शिक्षा के रूप में सीमित नहीं किया जा सकता।
6. शिक्षा के दो पक्ष होते हैं - शिक्षा की प्रक्रिया के दो पक्ष होते हैं अर्थात् मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक। बालक की मूल प्रवृत्तियों, संवेगों तथा प्राकृतिक शक्तियों के विकास का अध्ययन शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पक्ष के अन्तर्गत किया जाता है तथा सामाजिक आदर्शों, मूल्यों एवं मान्यताओं का अध्ययन शिक्षा के सामाजिक पक्ष के अन्तर्गत किया जाता है। इस विषय में प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डीवी महोदय का कहना है, "सभी प्रकार की शिक्षा व्यक्ति द्वारा सामाजिक जीवन की सक्रियतापूर्वक भाग लेने से आगे बढती है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वैदिक काल में गुरुओं के शिष्यों के प्रति उत्तरदायित्वों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य के परस्पर सम्बन्धों का विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- वैदिक शिक्षा व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु यह किस सीमा तक प्रासंगिक है?
  4. प्रश्न- वैदिक शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के कम से कम पाँच महत्त्वपूर्ण आदर्शों का उल्लेख कीजिए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए उनकी उपयोगिता बताइए।
  6. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे? वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य गुण एवं दोष बताइए।
  7. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
  8. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा के प्रमुख गुण बताइए।
  9. प्रश्न- प्राचीन काल में शिक्षा से क्या अभिप्राय था? शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं आदर्श क्या थे?
  10. प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा में प्रचलित समावर्तन और उपनयन संस्कारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  12. प्रश्न- वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान का विकास तथा आध्यात्मिक उन्नति करना था। स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- आधुनिक काल में प्राचीन वैदिककालीन शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- वैदिक शिक्षा में कक्षा नायकीय प्रणाली के महत्व की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- वैदिक कालीन शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ लिखिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  23. प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
  26. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए। आपको जो अब तक ज्ञात परिभाषाएँ हैं उनमें से कौन-सी आपकी राय में सर्वाधिक स्वीकार्य है और क्यों?
  27. प्रश्न- शिक्षा से तुम क्या समझते हो? शिक्षा की परिभाषाएँ लिखिए तथा उसकी विशेषताएँ बताइए।
  28. प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
  29. प्रश्न- शिक्षा का 'शाब्दिक अर्थ बताइए।
  30. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी अपने शब्दों में परिभाषा दीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
  32. प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
  33. प्रश्न- शिक्षा की दो परिभाषाएँ लिखिए।
  34. प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
  36. प्रश्न- 'शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  37. प्रश्न- 'शिक्षा भावी जीवन की तैयारी मात्र नहीं है, वरन् जीवन-यापन की प्रक्रिया है। जॉन डीवी के इस कथन को उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- शिक्षा विज्ञान है या कला या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ को स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा के व्यापक व संकुचित अर्थ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- शिक्षा और साक्षरता पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए। इन दोनों में अन्तर व सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- शिक्षण और प्रशिक्षण के बारे में प्रकाश डालिए।
  44. प्रश्न- विद्या, ज्ञान, शिक्षण प्रशिक्षण बनाम शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- विद्या और ज्ञान में अन्तर समझाइए।
  46. प्रश्न- शिक्षा और प्रशिक्षण के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।

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